ख़ैर चाय तो मैने पी ली, पर तुम नही आये

अधिकतर लोगों के दिन की शुरुवात चाय की पहली चुस्की के साथ ही होती है,मैं भी उन्हीं में से एक हूँ।
लेकिन जब साथ मे तुम हो तो चाय की बात ही कुछ और होती है

हुआ यूं कि एक रोज तुम्हारा फ़ोन आया और तुमने कहा कि मैं दो-तीन दिन में आ रहा हूँ तुमसे मिलने।

(“इतने लंबे लॉकडाउन के बाद तुमसे मुलाकात होगी,मैं इस बात को सुनकर उत्सुक थी।
मेरे मन मे जिज्ञासा थी ये जानने की, कि इस लॉकडाउन मे तुम में मुझको लेकर के क्या परिवर्तन आया है।
ये सब प्रश्न मेरे मन ही मन मे चल रहे थे।”)

आगे से तुमने जब कहा कि- “मुलाकात चाय के टेबल पर होगी फिर तो मन खुशी से झूमने लगा।

मैं जब तक तुम्हें सुझाव देती कि चाय इस रेस्त्रां में पियेंगे, मानो तुम मेरी मन कि बात जान गए और तपाक से बोल पड़े- पाय पियेंगे “चाय सुट्टा बार” मे।

हमारी मुलाकात में दो-तीन दिन का इंतज़ार था, मुझे ऐसा लग रहा था कि जल्दी से वो दिन आ जाये जिस दिन तुम आओगे।

आखिरकार इंतज़ार खत्म हुआ तीन दिन भी बीत गए,मेरे मन मे जो मुलाकात को लेकर खुशी थी अब वो दुःख में बदल गयी। जो मेने सोचा था उन सब पर पानी फिर गया।
मेने सोचा था इस लॉकडाउन में तुम बदल गए होंगे, शायद मुझको इम्पोर्टेन्स (महत्व) देने लग गए होंगे।
तुम आज भी पहले की तरह ही हो,सब कुछ बदल गया पर तुम नही बदले।
ख़ैर चाय तो मैने पी ली थी पर तुम नही आये
मैं तुम्हे कभी माफ नहीं करूंगी

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